यह कहानी एक ऐसे लड़के की है जिसके पैदा होते ही रिश्तेदारों ने कहा की इसको मार डालो यह किसी काम का नहीं है, समाज में हर तरफ उसका मनोबल गिराने की कोशिश की गयी लेकिन इस लड़के ने कमाल कर दिखाया उसने हार नहीं मानी।
श्रीकांत बोला कौन है ?
श्रीकांत बोला का जन्म 7 जुलाई 1991 को दामोदर राव और वेंकट माँ के घर एक बच्चा पैदा होता है जो आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के सीतारामपुरम गांव में जिसके पैदा होते ही समाज के लोग और आस-पास के लोग कहते है कि ये तो अँधा है जन्म से अँधा होना एक पाप की तरह है ये जिन्दगी में कुछ नहीं कर पायेगा और तुम्हे जिंदगी भर दर्द देगा इसे मार डालो लेकिन उनके माता-पिता ने उस समय किसी की भी नहीं सुनी और उस समय उनके माता -पिता के पास इतनी आमदनी भी नहीं थी और वो मानते थे उनका बच्चा ऊपर वाले का भेजा गया करिश्मा है और ये जिन्दगी में बहुत बड़ा करिश्मा करेगा ।
श्रीकांत बोला बॉलीवुड बायोपिक :-
श्रीकांत बोला जिसका बचपन बहुत कठिनाइयों के गुजरने बावजूद आज उस लड़के ने जिंदगी में करिश्मा कर दिखाया और खड़ी कर दी 500 करोड़ की कंपनी और इसकी वजह से ये लोगो के प्रेरणा स्रोत बन गये और उनके जीवन पर फिल्म भी बन चुकी है जो 10 मई 2024 को जारी हो चुकी है जिसमे राजकुमार राव ने श्रीकांत बोला की भूमिका निभाई।

श्रीकांत बोला का दृढ़ संकल्प और मेहनत :-
श्रीकांत बोला जिनके माता – पिता चावल की खेती करते थे और इनको भी ले जाना शुरू कर दिया था लेकिन ये चाहकर भी हाथ नहीं बटा पाते थे बाद उनके माता-पिता को लगा कि बेटा तो खेत में हाथ नहीं बटा पायेगा तो इन्होने श्रीकांत बोला को पढाई में लगाने के बारे में सोचा लेकिन सबसे करीबी स्कूल 5 मील दूर था और वहा तक जाने का कोई साधन भी नहीं था।

लेकिन श्रीकांत पैदल-पैदल जाते थे लेकिन समस्या इस सफ़र के बाद शुरू हुई ही जब वो स्कूल पहुंचते थे उन्हें लास्ट बेंच पर पहुंचा दिया जाता था जब गेम्स पीरियड की घंटी बजती और सारी क्लास ग्राउंड में चली जाती और श्रीकांत इस उम्मीद से बहार जाते थे कि कोई उसके साथ खेलेगा लेकिन हर बार निराश होते थे। अपने दिये गये इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कच्ची उम्र में अकेलापन उन्हें खाने लगता था और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते थे जब माता – पिता को उनके हाल के बारे में पता चला तो उनका एडमिशन एक स्पेशल स्कूल में करवा दिया।
लेकिन वो स्कूल उनके घर से लगभग 250 किलोमीटर दूर थी और इस वजह से उन्हें घरवालो की याद सताती थी और किसी भी चीज में मन नहीं लगता था और उन्होंने स्कूल से भागने की कोशिश भी कि लेकिन वो पकडे गये। इसके बाद उनको समझाया गया की की घर जाकर तुम कैसी जिंदगी जीयोगे तो बाद में उन्होंने पढने की ठानी और सबसे पहले उन्होंने ब्रेल सीखी और फिर इंग्लिश और बाद में क्रिएटिव राइटिंग और डिबेट्स में हिस्सा लेने लगे और जीतते थे। इन्होने चैस खेली और ब्लाइंड क्रिकेट खेला और दोनों में नेशनल लेवल तक पंहुचे ।
श्रीकांत बोला जब मिले डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से :-
श्रीकांत बोला जब 9th क्लास में थे तब लीड इंडिया 2020 प्रोग्राम जो शुरूकिया था डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने जहा यंगस्टर्स को मेंटर किया जा रहा था तब डॉ एपीजे अब्दुल कलाम वहा सारे बच्चो से एक एक करके पुछ रहे थे कि आपके लाइफ का गोल किया गया है तभी जब श्रीकांत बोला को पूछा तो उन्होंने बताया कि वो देश के पहला विजुअली इम्पेयर्ड प्रेसिडेंट बनना चाहता हु।

और जिस कॉन्फिडेंस से इन्होने बोला बाद में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने उनकी तारीफ भी की। बाद में इन्होने कंप्यूटर सिखना शुरू किया और 10th में इन्होने 90 परसेंट स्कोर किया था। और आगे की पढाई के लिए वो साइंस लेना चाहते थे लेकिन स्कूल नहीं माना और स्टेट बोर्ड का हवाला देकर बोला गया की आप आर्ट्स लीजिये साइंस नहीं लेकिन उन्होंने कोम्प्रोमाइज नहीं किया और अब इन्हें पढनी है तो वो साइंस ही पढनी है।
और बाद जब उन्हें साइंस लेने से मना कर दिया तो वो कोर्ट में पहुँच गये और 6 महीनो तक कानूनी लड़ाई लड़ी और आख़िरकार वो जीत गये। और फाईनली गवर्मेंट का ऑर्डर आता है की आप साइंस ले सकते है लेकिन वो भी अपनी रिस्क पर और उसके बाद श्रीकांत बोला ने अपनी मेहनत डबल कर दी और सारी बुक्स को ऑडियो बुक्स में तब्दील कर दी और जब रिजल्ट आया तो 98 मार्क्स के स्कोर से पास हुए।
बोलेंट इंडस्ट्रीज की स्थापना :-
श्रीकांत बोला ने जब बाद में यहाँ पर कई सारे पढाई के विकल्प खोजे लेकिन हर जगह से निराशा हाथ लगती और बाद में उन्हें अमेरिका के कॉलेज Mit University (Massachusetts Institute of Technology) के बारे पता चला उन्होंने स्कॉलरशिप ऑफर की औ वो Mit University के पहले ब्लाइंड स्टूडेंट भी बन गये।

उन्हें वहा पर बड़े – बड़े जॉब ऑफर्स आने लगे लेकिन उन्होंने ये ठान ली की थी जो मेरे साथ हुआ है वो किसी और के साथ ना हो तो वापस वो भारत आगये और वहा पर एक बिल्डींग किराये पर ले ली कंप्यूटर क्लास शुरू कर दी जहा पर वो ब्लाइंड स्टूडेंट्स को स्किल सिखाने लगे।
लेकिन उन्हें जॉब की जरुरत थी तो उन्हें कुछ पैसे इकट्ठा किये और कुछ फंडिंग की जिसके बाद वर्ष 2012 में एक कंपनी खोली जिसका नाम बोलेंट इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड जो इको फ्रेंडली डिस्पोजल प्रोडक्ट बनाती थी जो पूरी तरीके के रिसाइकल किये हुए कागज से बनते थे। यह कंपनी विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है और पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाती है। कंपनी की वर्तमान वैल्यूएशन लगभग 500 करोड़ रुपये है।
निष्कर्ष :-
श्रीकांत बोला की कहानी हमें सिखाती है कि “आपकी परिस्थितियाँ नहीं, बल्कि आपका आत्मविश्वास और मेहनत ही आपकी तकदीर तय करते हैं।” अगर हम हार मानने की बजाय लड़ते रहें, तो नामुमकिन कुछ भी नहीं। और कि कठिनाइयों के बावजूद, दृढ़ संकल्प और मेहनत से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।