आर. प्रज्ञानानंदा जिनका पूरा नाम रमेश बाबु प्रज्ञानानंदा है जिन्होंने कम उम्र में ही कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। उनका जन्म 10 अगस्त 2005 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था।

कौन हैं प्रज्ञानानंदा ?
यह कहानी उस खिलाडी की है जो मध्यमवर्गीय परिवार में उसका जन्म हुआ है उनका जन्म 10 अगस्त 2005 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। और उन्होंने 3 साल की उम्र में ही चैस खेलना शुरू कर दिया था उनके पिता, रमेशबाबू, एक बैंक प्रबंधक हैं, और माता, नागलक्ष्मी, गृहिणी हैं।
वो बाकि बच्चो की तरह ही कार्टून देखा करता था लेकिन घर वालो ने कहा की कार्टून से देखने से काम नहीं चलेगा तुम्हे जिन्दगी में बहुत कुछ बड़ा करना है तो इसके बाद उसका मन शतरंज में गया और उसकी बहन ने उसको चैस खिलाना सिखाया और आज वो अपनी दीदी को पीछे छोड़ के शतरंज की दुनिया में बहुत आगे निकल गया |
और उसके बाद उसको शतरंज की कक्षा में सिखने के लिए भेजा और जब वो सिखने या किसी प्रतियोगिता में जाते तो उसकी माँ प्राथना किया करती की मेरे बच्चो को ग्रैंडमास्टर बनाना और उसके बाद आज जाके उसकी माँ की प्राथना स्वीकार हो गयी और इनका पूरा नाम रमेश बाबु प्रज्ञानानंदा है |
जब ये मात्र 16 साल के थे तब उन्होंने विश्व शतरंज चैंपियन नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन को शतरंज टूर्नामेंट क्लासिकल शतरंज में हरा दिया था और उसके बाद उन्होंने अपनी पहली जीत दर्ज की |
माँ की महत्वपूर्ण भूमिका :-
उनकी बड़ी बहन वैशाली को भी चैस खेलना पसंद है और उनको देखकर भी प्रज्ञानानंदा ने चैस खेलना शुरू किया और एक बड़ी बात प्रज्ञानानंदा अब पुरे विश्व में नाम कमा चुके है लेकिन आप इनके कोच या किसी से भी बात करेंगे तो देखेंगे की इन सब के पीछे प्रज्ञानानंदा की मेहनत और लगन तो है ही लेकिन इन सब में इनके माँ का सबसे बडा हाथ है |
क्योकि प्रज्ञानानंदा की कोचिंग कक्षा से लेकर उनके घर के माहौल तक जहा प्रज्ञानानंदा को चैस खेल के प्रैक्टिस में कोई परेशानी ना हो और घर से हजारो किलोमीटर दूर उनको घर का खाना खिलाना हो वो सब उनकी माँ देखा करती थी और उनकी माँ का पूरा जीवन अपने दोनों बच्चो को ग्रैंड मास्टर बनाने के सपने में बीत गयी चेन्नई में ब्लूम शतरंज अकादमी में उसके एस त्यागराजन प्रज्ञानानंदा के पहले कोच थे वो कहते है |
उनकी माँ हमेशा उनके लिए कोई भी टूर्नामेंट होती थी तो वो कोने में जाकर बैठ जाती थी और उनके लिए भगवान से प्रार्थना किया करती थी |
प्रज्ञानानंदा की प्रमुख उपलब्धियाँ:
जनवरी 2024 में, टाटा स्टील शतरंज टूर्नामेंट के दौरान, प्रज्ञानानंदा ने मौजूदा विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को 62 चालों में मात दी। इस जीत के साथ, उन्होंने 2748.3 रेटिंग अंक हासिल किए, जिससे वे भारत के नंबर-1 शतरंज खिलाड़ी बन गए, विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़ते हुए। 7 वर्ष की आयु में, प्रज्ञानानंदा ने वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीतकर ‘एफआईडीई मास्टर’ का खिताब हासिल किया। 10 साल की उम्र में, वे ‘इंटरनेशनल मास्टर’ बने, और 12 वर्ष की आयु में ‘ग्रैंडमास्टर’ का खिताब प्राप्त किया, जो उस समय दुनिया में दूसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर थे।
प्रज्ञानानंदा से सिखने को क्या मिलता है ? :-
प्रज्ञानानंदा अपने हर टूर्नामेंट के मैच के लिये पूरी प्लानिंग बनाते है और अपने शिक्षक और कोच के साथ और खासकर अपने बचपन के कोच आर. बी रमेश उनके साथ मिलकर वो प्लेंनिंग करते है और वो अपने हर प्रतिद्वंदी के साथ कैसे खेलना है और उसके साथ मुकाबला करना है वो इन सबकी भी तैयारी करते थे |
हमें हमेशा सिखने पर फोकस करना चाहिए और जैसा की मैने कहा की आर. प्रज्ञानानंदा बचपन में कार्टून देखा करते थे जैसा की सब बच्चो की तरह लेकिन उनके घर ने समजाया की सिर्फ कार्टून देखने से कुछ नहीं होगा उन्हें कुछ और सिखना चाहिए तो जो उनके आस- पास और घर का माहौल था |
तो उसके बाद प्रज्ञानानंदा ने चैस सिखना शुरू किया इन सब में इनकी बड़ी बहन वैशाली ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और उनकी माँ नागलक्ष्मी ने बहुत बड़ा योगदान और त्याग दिया है तो ये सब बाते में हमें अपनी जिन्दगी में सीखनी चाहिए और अपने जीवन में अपने हर लक्ष्य के अपनाना चाहिये |