होली की छुट्टियों के दौरान, जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई। उस समय वे शहर में मौजूद नहीं थे। उनके परिवार के सदस्यों ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को सूचित किया।
आग बुझाने के बाद, दमकल कर्मियों को बंगले के अंदर भारी मात्रा में नकदी मिली, जिससे संदेह उत्पन्न हुआ कि यह पैसा अवैध तरीके से एकत्र किया गया हो सकता है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इस घटना पर आपात बैठक बुलाई और जस्टिस वर्मा को उनके मूल स्थान इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की।
कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने चिंता जताई कि केवल ट्रांसफर पर्याप्त नहीं होगा।
उन्होंने सुझाव दिया कि जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांगा जाना चाहिए, और यदि वे इनकार करते हैं, तो संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।
इस घटना के बाद, न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिससे न्यायपालिका की साख पर प्रभाव पड़ सकता है।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इस मुद्दे को राज्यसभा में उठाया, जिससे न्यायिक जवाबदेही पर चर्चा की मांग हुई। राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने इस पर विस्तृत चर्चा का आश्वासन दिया।
जस्टिस वर्मा 2012 से अगस्त 2013 तक उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य स्थायी वकील रहे।
13 अक्टूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 1 फरवरी 2016 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए।